Thursday, September 10, 2015

आंवले का पेड़

(स्केच नंबर ८)

बचपन में, यदा कदा दीवाली की लंबी छुट्टी में, 

मैं मां के संग अपनी नानी के घर जब जाया करता, 

तो दीवाली के कुछ दिनों बाद वह ले जाती थी हमको, 

गांव के पास के आंवले के बगीचे में खाने पीने का सामान सजाकर, 

यह कहते कि आज वही बगीचे में ही दिन का खाना खाना है । 


पैदल जाते रास्ते भर मैं कितने सवाल मां से, नानी से पूछा था करता, 

कहां जा रहे, क्यों जा रहे,आज भला क्यों दिन का खाना

हम सब खाते हैं खुले बगीचे में बैठे, और आंवले के पेड़ो के नीचे?


नानी धीरज रखते मुझको बतलाया करती थी,

कि कार्तिक का यह आज शुक्ल पक्ष नवमी तिथि है,

पवित्र बड़ा यह दिन, इसे आंवला नवमी भी कहते हैं, 

और आज आंवले के पेड़ों के नीचे भोजन करने से, 

पुण्य बड़ा होता है,मिटते सब दुख दारिद्य,रोग व्याधि 

और विद्या,बल, बुद्धि, स्वास्थ्य,धन सुख बढ़ता है।


नानी बतलाती आज आंवले के वृक्षों में , 

धन्वंतरि हैं प्रविष्ट स्वयं होते, इसके फलपत्तों से अमृत बांटते, 

और देववैद्य अश्विनीकुमार हवा के संग बहते उपवन में 

आंवले की छाया में दिनभर आज  स्वास्थ्य बल देते।


नानी की  बातें कुछ पल्ले पड़तीं कुछ सिर से ऊपर जातीं, 

मगर हमारे पग में जल्दी वहां पहुंचने की उमंग और गति मिल जाती।


वहां बड़ा मेला सा रहता, बड़े, युवा और ढेर से बच्चे, 

जगह जगह जलते थे चूल्हे, भोजन की तैयारी करते , 

अलग अलग सब अपनेअपने जात-पात के झुंड बनाते 

अलबत्ता बच्चे मिल खेले,नाम न जानें, ना जाति पूछते।


लकड़ी के चूल्हे पर पकाती मां नानी संग चटपट खाना, 

और हम बच्चे बड़े मजे से , चादर पर बैठे पंक्ति से 

गरम गरम पूरी तरकारी, खाते छककर और मनमाना, 

भोजन के अंत सभी चाभते खीर मिठाई दोना दोना।


भोजन को निपटाकर मां नानी बर्तन और कपड़े समेटते, 

ढलता दिन, और थकीं काम से, घर वापस की तैयारी करते, 

तब हम बच्चे  धमाचौकड़ी करते अपने खेल पुजाते,

 इधर दौड़ते, उधर दौड़ते, मुश्किल  से वापस घर को कदम बढ़ाते।


और लौटते रास्ते, बरबस मुड़ते तकते जो उपवन को , उन पेड़ों को, 

ऐसा अनुभव होता कि वह दे रहे आशीष वचन हैं हमको, 

कि बच्चे तुम चिरायु हो, खुश हो, स्वस्थ रहो, पढ़ो, बढ़ो, उन्नति हो तेरी, 

इसी तरह तुम आते रहना, तेरे जीवन में सब शुभ हो, मिलती रहेगी ममता मेरी।


आंवले के उपवन के इन आशीष वचन में 

वही वात्सल्य, प्रेम, ममता अनुभव होती थी। 

जो नानी के मेरे सिर पर हाथ फेरते हौले से, 

उसकी आंखों में मुझको ममता दिखती थी।


-देवेंद्र दत्त मिश्र


-फोटोग्राफ Shri Dinesh Kumar Singh  द्वारा



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