Saturday, June 23, 2012

इमर्जेंसी वर्सेस इंपॉर्टेंट- दुष्चक्र से गुणचक्र तक ( Emergency v/s Important: From Vicious Circle to Virtuous Circle)



विगत दिन हमारे रेलमंडल के एक महत्वपूर्ण रेलवे निरीक्षण में हम पाँच-छः अधिकारी साथ यात्रा कर रहे थे, और हमलोग परस्पर अनौपचारिक बातचीत में अपने विभागीय कार्यप्रणाली की समस्याओं व उनके निवारण के संभावित उपायों पर चर्चा कर रहे थे।

प्रसंगवश   हमारे एक सहकर्मी अधिकारी , जो एक अति सुलझे,विचारवान व हाल ही में हारवर्ड विजनिस स्कूल से अपनी उच्च प्रबंधन की पढ़ाई पूरी कर वापस रेलवे की सेवा में आये है, उन्होंने हम सबसे एक बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न एक क्विज-गेम के अंदाज में पूछा- प्रश्न था कि यदि हमारे सामने साथ ही साथ दो काम हें, जिनमें एक तो आपातस्थिति(Emergency)और दूसरा महत्वपूर्ण (Important),तो हमें वरीयता किसको देनी चाहिये ? प्रश्न बड़ा ही रोचक था और हम सभी प्रतिक्रिया देने को एक साथ बच्चों की तरह उतावले थे, किंतु उन्होंने हम सबसे एक-एक कर अपना उत्तर देने का अनुरोध किया ।

हम सभी पाँच-छः लोगों ने स्वाभाविक रूप में इस प्रश्न का यही उत्तर दिया कि निश्चय ही हम आपातस्थिति(Emergency) कार्य को वरीयता देंगे। हालाँकि मेरे मन में इस प्रश्न का सीधा उत्तर देने में दुविधा थी और मैंने अपने उत्तर को स्पष्ट करते हुये कहा कि हालाँकि परिस्थिति की विवशतावश हमें आपातस्थिति(Emergency) कार्य को वरीयता देनी होती है, किंतु इसका कतई अर्थ नहीं कि हर आपातस्थिति(Emergency) कार्य महत्वपूर्ण ही है, बल्कि सच कहें तो सभी आपातस्थिति(Emergency) कार्य प्रायः निरर्थक व अनुत्पादक, किंतु दुर्भाग्य से अपरिहार्य, होते हैं और इनका  उद्भव प्रायः महत्वपूर्ण कार्यों की अनदेखी व उन्हें वरीयता न देने व समय से न पूरा करने व उनकी समुचित देख-रेख न होने के कारण ही होता है। यानि यदि हम महत्वपूर्ण कार्यों को समय से निपटाते रहें व उनका ध्यान रखें, तो संभावित अधिकांश आपात-परिस्थितियों को टाला जा सकता है।इस बात से काफी हद तक सहमत होते हुये हम सभी ने  यह स्वीकार किया कि हमें महत्वपूर्ण कार्य को वरीयता देनी चाहिये व इन्हें पहले निपटाना चाहिये।

मैं समझता हूँ कि इस प्रश्न के सीधे उत्तर देने में,यदि व्यवहारिक पक्ष का ध्यान रखें, तो दुविधा का होना स्वाभाविक ही है। जब सामने आपातस्थिति(Emergency) हो तो नीर-क्षीर विवेक विश्लेषण बेमानी सिद्ध होता है , व मनुष्य को परिस्थिति की विवशता को देखते सर्वप्रथम आपातस्थिति(Emergency) कार्य को निपटाना ऩिर्विकल्प व अपरिहार्य हो जाता है।अपनी रेलवे की कार्यप्रणाली पर ही दृष्टि डालें तो काफी हद तक यह स्प्ष्ट दृष्टिगत होता है, कि हमारा अधिकांश समय,उर्जा व संसाधन आपातस्थितियों- जैसे- रेलदुर्घटनायें- उनका प्रबंधन व जाँच-कार्यवाही,ट्रेनों की लेट-लतीफी,स्टेशनों, टिकट बुकिंग कार्यालयों व ट्रेनों में प्रतिक्षारत व प्रतिक्षासूची यात्रियों की भारी तादात व उनके कारण स्टेशन परिसरों व ट्रेनों की साफ-सफाई पर भारी दबाव व खस्ता हालात,वी.आई.पी व्यक्तियों के निरीक्षण व आवाजाही,जैसे आपातस्थिति कार्यों के प्रबंधन में ही जाया चला जाता है,और इनके कारण हमें अपने विभाग के अच्छे स्वास्थ्य व उन्नति हेतु आवश्यक अनेक महत्वूर्ण कार्यों को नजरंदाज करना पड़ता है।

ऐसा नहीं कि यह प्राथमिकता-विसंगगति की समस्या मात्र हमारे रेल-प्रबंधन तक सीमित है, बल्कि सच कहें तो यह हमारे देश में शासन व विधि-व्यवस्था के प्रायः हर क्षेत्र में कमोवेस विद्यमान है- यानि चाहे हमारे शहरों का शासन व प्रबंधन हो,चाहे हमारे देश का आर्थिक व व्यवसायिक प्रबंधन हो और यहाँ तक कि हमारे समाज से लेकर स्वयं एक सामान्य व्यक्ति के जीवन व्यवस्था में भी इसी प्रकार की विसंगति स्पष्ट दिख जाती है।

हम अपने शहरों के स्थानिय शासन व व्यवस्था पर दृष्टि डालें तो उन्हे बस रोजमर्रा की आपात स्थिति- बिजली, पानी की भारी किल्लत,अव्यवस्थित भारी ट्रैफिक की रेलमपेल,बिगड़ी हुई कानून और व्यवस्था ,राजनीतिक व प्रशासनिक वीवीआईपी की सुरक्षा व्यवस्था जैसी आपातपरिस्थितियों को निपटने में ही बारहों महीने ऐसा जूझते रहना पड़ता है कि शहर की यथोचित सुव्यवस्था व उसके विकास हेतु समुचित योजना बनाने व उनका सफल क्रियान्वयन करने जैसे अति महत्वपूर्ण कार्यों की भारी उपेक्षा की जाती है। परिणामस्वरूप हमारे शहरों की  दिन-पर-दिन व्यवस्था और बिगड़ती जा रही है और स्वाभाविक रूप से यहाँ आपातस्थितियाँ भी बढ़ती जा रही हैं ।इसतरह हमारे शहरों की शासनव्यवस्था एक दुष्चक्र में फँसी घिसट सी रही है।

यही हाल हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था व प्रबंधन का है। राजनीतिक कारणों से अलाभकारी परियोजनाओं में भारी निवेश व लाभकारी परियोजनाओं में समुचित निवेश की भारी उपेक्षा,"आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया" की नीति के कारण बजटकोश में भारी घाटा, फिर "ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत्" की नीति के कारण पिछले भारी कर्ज के व्याज के भुगतान के तले दबता करेंट-अकाउंट जिसके कारण रुपये का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी अवमूल्यन,रुपये के अवमूल्यन के कारण पुनः तेलआयात का बेतहासा बढ़ता खर्च,बढ़ती हुई मुद्रास्फिति, फिर इन आपात-परिस्थितियों के निपटने हेतु रिजर्वबैंक द्वारा लिये जाने वाले मॉनिटरी नीतिगत कदम से देश के  आर्थिक  विकास पर विपरीत प्रभाव, यानि " ज्यों-ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता ही गया" वाला हाल है। इस तरह हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था भी एक दुष्चक्र में ही फँसी दिखती है।

सामाजिक स्तर  व एक आम मुफलिस इंसान की निजी जिंदगी भी इससे इतर नहीं दिखती। एक आम  इंसान भी अपने नून-तेल और दो रोटी के इंतजाम व जिंदगी के इस आपात प्रबंधन में इतना मसगूल रहता है, कि उसे अपने बच्चों की शिक्षा-दिक्षा,उनका स्वस्थ विकास, घर में महिलाओं के स्वास्थ्य की सही देख-रेख जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य पर उसे ध्यान देने की न तो फुरसत है न ही कूबत। इस तरह एक आम आदमी की जिंदगी ही एक तरह से लगातार फायरफाइटिंग में ही बीत जाती है।परिणामस्वरूप न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर,बल्कि सामाजिक स्तर पर भी जीवन मूल्य व स्वास्थ्य की परिस्थिति सोचनीय रूप से खराब स्पष्ट दिखती है। देश में साक्षरता का नीचा प्रतिशत,मातृ व शिशु मृत्यु दर का उच्च प्रतिशत,भुखमरी- कुपोषण जनित बिमारियों की भारी उपस्थिति व उनके कारण प्रतिवर्ष भारी संख्या में होने वाली मृत्यु, बालमजदूरी प्रथा, इत्यादि आंकड़े पूरी सच्चाई व हालात को बखूबी बयान करते हैं।

इस तरह आम इंसान की आजीवन आपातस्थिति से ही जूझते रह जाने और इस कारण जीवन उन्नति हेतु आवश्यक व महत्वपूर्ण कार्यों को नजरंदाज करने की विवशता के कारण न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामाजिक स्तर पर हम गुणवत्तापूर्ण जीवनस्तर से न सिर्फ कोसों दूर है, बल्कि एक दुष्चक्र में फँसे हुये हैं जिनसे उबरने की भी निकट भविष्य में कोई आशा दिखती नजर नहीं आती।

तो यह कामना ही कर सकते हैं कि आपातपरिस्थितियों के दुष्चक्र से बाहर निकलकर महत्वपूर्ण कार्यों पर अमल करने की परिस्थिति व हालात बनें, जिससे हर स्तर पर उन्नति हो, विकास हो, गुणवत्ता बढ़े।  

2 comments:

  1. आगे की नहीं सोचेंगे तो वर्तमान में ही उलझकर रह जायेंगे..स्तरीय और अनुकरणीय आलेख..

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