Saturday, October 15, 2011

जीवन नश्वर एक पहेली


कल शाम जैसे ही मैं ऑफिस से घर पहुँचा,अपनी बेटी को दुःखी व उदास पाया।मुझे चिंता सी हुई व कारण पूछने पर उसने बताया कि उसकी एक सहपाठी मित्र के पापा नहीँ रहे,पिछले कुछ महीने से वे कैंसर से गम्भीर रूप से बीमार थे, और अभी सूचना मिली की उनका निधन हो गया।

मैं अपनी बेटी के दुःख को समझ सकता था।विगत कुछ वर्षों में अपने कुछ नजदीकी लोगों,मित्रों के अचानक व असमय कालकवलित हो जाने की वेदना मेरे भी मन व हृदय में घुमड़ आयी व मन भारी सा हो गया।

किताबी ज्ञान व अध्ययन से यह प्रकाश तो मन में आता है कि जीवन नश्वर व क्षणभंगुर है,इसका शोक करना निष्प्रयोजन है, इसे स्वीकार करना ही जीवन की नियति है, किंतु जब कोई अपना हमें छोड़कर हमेशा के लिये अनंतयात्रा के लिये प्रयाण कर जाता हैं,और जब यह अहसास होता है कि उससे अब कभी मिलना संभव नहीं होगा,उसका सानिध्य,स्नेह व प्रेम अब हमेशा के लिये ओझल हो गया, तो सारा ज्ञान अर्थहीन हो जाता है,और मन कुछ समय के लिये दुःख व वेदना से विह्वल और संतप्त हो उठता है, मन में अनेकों प्रश्न एक साथ उठने लगते है - कि ऐसा उसके साथ क्यों हुआ,उसके न रहने से जो लोग संबन्धित व अवलंबित थे,उनपर क्या बीतेगी,उन्हे कौन जीवन-सम्बल देगा ।

ये प्रश्न हैं तो बहुत चुनौती भरे एवं भविष्य की अनिश्चितता से भरे, किंतु समय व नियति ने कब और किसकी परवाह की है।अद्भुत बात तो यह है कि इन पहेली भरे प्रश्न के उत्तर भी समय व भविष्य के गर्भ में ही छिपे होते हैं।

मुझे याद है कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक वरिष्ठ सहकर्मी की किडनी की बीमारी व हृदयगति रुकने से असमय देहांत हो गया, परिवार की स्थिति बड़ी कच्ची- पत्नी साधारण शिक्षा दिक्षा वाली गृहिणी,बेटा आठवीं जमात में,संयोगवश पारिवारिक पृष्ठभूमि व परिस्थितियाँ भी अच्छी व अनुकूल नहीं थी कि उन्हे कुछ संबल मिलता।

हम सभी उनके परिवार के भविष्य प्रति काफी चिंतित थे। किसी तरह उनकी पत्नी को विभागीय करुणा के आधार पर एक छोटे पद की नौकरी मिल गयी, बेटा अपना अध्ययन जारी रखा।इसी बीच मेरा स्थानांतरण हो जाने व परिस्थितिवश कुछ वर्षों से उन लोगों से कोई सम्पर्क या सूचना नहीं मिली

किंतु कुछ माह पहले ही जब उनसे दुबारा सम्पर्क हुआ तो यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि उनका बेटा अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर अच्छी तरह से व्यवस्थित हो गया है, और मैडम भी सकुशल व अपने नौकरी में सुव्यवस्थित हो गयी है।

बहुत दिनों के उपरांत उनसे बातकर,उनका कुशल क्षेम जानकर व उनके घर में खुशी व प्रसन्नता का समाचार जान मन बहुत प्रसन्न,संतुष्ट व ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हुआ कि वह बड़ा ही दयालु है, जो बड़े से बड़े दु:ख के बदले में समय के साथ अनेक खुशियों की सौगात भी लौटा देता है, यदि वह एक पिता का साया परिवार से दूर कर देता है, तो एवज में स्वयं अभिवावक व संरक्षक बन वह अदृश्य संबल प्रदान करता है।इसीलिये तो उसे हम परमपिता कहते हैं।

हालाँकि अपनों के न रहने का सूनापन व उनको खोने की कचोट की भरपाई तो संभव नहीं, किंतु समय के साथ जीवन में आयी वापस सामान्य स्थिति,अपनों को खोने से दुःखी व उदास चेहरों पर वापस मुस्कान व खुशियाँ निश्चय ही इस जीवन के प्रति एक आस्था प्रदान करती है,और इसके उतार-चढ़ाव की अनिश्चितताओं के प्रति आश्वस्त भी करती हैं।

जीवन नश्वर, एक पहेली व अज्ञात प्रश्न, तो है किन्तु भविष्य के गर्भ में निहित इसके समाधान भी सदैव शुभ व कल्याणमय होते हैं, यही इसकी सुंदरता व आशापरकता भी है।

5 comments:

  1. जीवन मृत्यु तो परमात्मा के हाथों में है|

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  2. आज को ढंग से जी लें, कल जैसा हो, हो।

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  3. Nice write up, once again i am overwhelmed,very true what n all you wrote, death is a riddle to all of us those are alive.
    So live to the fullest and enjoy each day with your loved once till the day you are alive :-)

    Thanks for writing once again.

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  4. अपनों को खोने का दर्द बहुत गहरा होता है लेकिन ईश्‍वर सभी को सहारा देता है।

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  5. आज को ढंग से जी लें, कल जैसा हो, हो।

    अपनों को खोने का दर्द बहुत गहरा होता है लेकिन ईश्‍वर सभी को सहारा देता है।

    यही दो लाइन आपकी इस सम्वेदनायुक्त पोस्ट को पढ़कर मेरे भी मन में आया है....इंसानी संवेदना से युक्त पोस्ट के लिए आभार....

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